बुधवार, 30 दिसंबर 2009

विकलांगता और हास्य

दशक भर या थोडा पहले एक फिल्म आई थी ' हम है कमाल के' । इसमें बहरे और अंधे किरदारों को लेकर हास्य पैदा करने की कोशिश की गयी थी। हाल में प्यारे मोहन और टॉम डिक एंड हैरी नाम की फिल्मे आयी थी इसमें भी विकलांगता को हास्य का माध्यम बनाया गया था. मेरा अभिप्राय बस इतना है की फिल्मो के इतिहास में विकलांग किरदार हमेशा ही हास्य फिल्मो के अभिन्न अंग रहे है. क्या फिल्म निर्माता हमें हँसाने के लिए इनका सहारा लेने के लिए मजबूर है ? क्या वह इतने कल्पनाहीन है की इनके बिना हास्य फिल्मे नहीं बना सकते ?
शारीरिक विकलांग व्यक्ति को जीवन में अनेक चुनोतियो का सामना करना पड़ता है, इस लिए वह शारीरिक चुनोतिपूर्ण कहलाते है। फिल्मो में धुम्रपान और मदिरापान के खिलाफ आवाज उठाई जाती है, कानून बनाये जाते है परन्तु, धेपन, बहरेपन और गूंगेपन को हास्य का जरिया बना रहने दिया जाता है। क्या आप कल्पना कर सकते है की शारीरिक चुनोतिपूर्ण व्यक्ति इन फिल्मो से कितना असहज महसूस करते है?
फिल्म निर्माता जरा इतना सोचे की क्या इनको लेकर 'ब्लैक' जैसी फिल्मे नहीं बन सकती है.

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